दिल्ली को राजधानी बनाने के निर्णय के साथ, पंजाब के उपराज्यपाल ने अपनी अधिसूचना में दिल्ली के जिलाधीश को निर्देशित किया कि भारत की नई राजधानी के लिए भूमि अधिग्रहित करे। भूमि का अधिग्रहण किए जाने के पश्चात इम्पीरियल दिल्ली एस्टेट का सृजन मुख्य आयुक्त, दिल्ली की अधिसूचना के माध्यम से किया गया। तत्कालीन भूमि और विकास कार्यों को लोक निर्माण विभाग के कार्यकारी अभियंता द्वारा किया जाता था, जिसे भूमि और विकास अधिकारी के नाम से जाना जाता था और मुख्य अभियंता के कार्यालय, लोक निर्माण विभाग में वे मुख्य आयुक्त के सचिव के नियंत्रणाधीन होते थे। भूमि और विकास अधिकारी औपचारिक तौर पर रायसीना एस्टेट की सरकार की ओर से भूमि प्रलेख संबंधी कार्यों व तत्संबंधित प्रशासन की देखरेख किया करते थे। कार्य को मुख्य आयुक्त, दिल्ली के प्रत्यक्ष नियंत्रण में 1 मार्च 1928 को हस्तांतरित किया गया। इस प्रकार वर्ष 1928 में भूमि और विकास कार्यालय एक पृथक संगठन के रूप में अस्तित्व में आया जो आयुक्त, दिल्ली के प्रशासकीय नियंत्रण में था। स्वतंत्रता के समय से, इस कार्यालय की गतिविधियों में धीरे-धीरे विस्तार होने लगा। वर्ष 1958 में मुख्य आयुक्त ने नजुल भूमि को अधिसूचित क्षेत्र समिति, सिविल सेक्शन, दिल्ली के प्रबंधन के अधीन लाना प्रारंभ किया, और उन्हें भूमि और विकास अधिकारी के प्रशासनिक नियंत्रण में लाया गया। 1 अक्टूबर, 1959 से प्रभावी करते हुए भूमि और विकास अधिकारी को तत्कालीन शहरी विकास मंत्रालय (वर्तमान में आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय) के नियंत्रण में लाया गया, तब से यह इस मंत्रालय के एक अधीनस्थ कार्यालय के रूप में कार्य कर रहा था। भूमि और विकास कार्यालय को 4 अप्रेल 2000 की राज-पत्र अधिसूचना के द्वारा शहरी विकास मंत्रालय (वर्तमान में आवासन और शहरी कार्य मंत्राालय) के अधिनस्थ कार्यालय से संबद्ध कार्यालय के रूप मे परिवर्तित किया गया।
Last Updated Date : Jan 9 2021 3:20PM